आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, कवि श्रीमान शैलेंद्र शांत की अद्भुत रचना.......
हाँ तुम मेरी हो-
तुमने ही दोस्ती कराई शब्दों से
भावों, संवेदनाओं को साझा करना सिखलाया
'जनपथ' का पथिक बनाया
'अपने ही देश में' खूब घुमाया
'चकाचौंध का अँधेरा' होता है बहुत गहरा
तुमने ही आगाह किया, चेताया
'भरोसे की बात' की पहचान कराई
'सुने तो कोई' का गुहार लगवाया
'सपने की बात' सुनाई तुमने ही
बहुत कड़वा होता है पूरा फसाना
सो 'आधी हकीकत' को दर्ज कराया
तुम्हारे प्रेम में पड़ कर ही मैंने
एक नया जीवन पाया
हे मेरी
तुम मेरी ही हो
उनकी भी,जिनने तुमको दिल से चाहा !
नमस्कार दोस्तों !
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