मैसेंजर ऑफ आर्ट के प्रस्तुतांक में पढ़ते हैं, कवयित्री सुश्री वत्सला पांडेय जी की फ़ेसबुक वॉल से साभार ली गयी अद्भुत कविता........
कवयित्री वत्सला पांडेय |
अक्सर भूल जाती हूँ
अटेंडेंस रजिस्टर पर
साइन करते समय अपना कॉलम
अक्सर भूल जाती हूँ
पर्स में किस पॉकेट में
रखे थे ज़रूरी कागज़
अक्सर ही भूल जाती हूँ
घर को लॉक करने के बाद
ताला खुला तो नहीं रह गया
अक्सर भूल जाती हूँ
फ्रिज में रखी हुई
हरी सब्जियां,
यहां तक सुबह मंगाई ब्रेड भी
पर भूल नहीं पाती हूँ-
तुम्हें और तुम्हारे द्वारा
प्रेम के नाम पर किये गए छल को !
नमस्कार दोस्तों !
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